Tag: मुक्तक
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विरहणी के मुख से कुछ मुक्तक
Ram Krishan Rastogi
तुम मेरे बादल हो, मै तुम्हारी काली घटा हूं
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तेरी यादों की खुशबू
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सुहाग रात
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देखा है जब से तुमको
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मुझसे बचकर वह अब जायेगा कहां
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भले ही तुम कड़वे नीम प्रिय
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मन तेरा भी करता होगा
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मेरा दिल क्यो मचल रहा है
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तुम बिन आवे ना मोय निंदिया
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कभी क्यो दिल जलाते हो तुम मेरा
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करप्शन के टॉवर ढह गए
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घर घर तिरंगा अब फहराना है
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रक्षाबंधन भाई बहन का त्योहार
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अगर प्यार करते हो मुझको
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कैसे बताऊं,मेरे कौन हो तुम
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काश ! तेरी निगाह मेरे से मिल जाती
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में और मेरी बुढ़िया
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आज की सियासत
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कविता में मुहावरे भाग दो
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कविता में मुहावरे
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आ तुझको तुझ से चुरा लू
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मुझसे बचकर वह अब जायेगा कहां
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क्या क्या हम भूल चुके है
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गर्मी का कहर
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टूटते परिवार सिमटते रिश्ते
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मेरे दिल का दर्द
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मातृ दिवस पर मां को समर्पित कुछ पंक्तियां
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मजदूर दिवस
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तुझे अपने दिल में बसाना चाहती हूं
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पनघट और मरघट में अन्तर
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विश्व पुस्तक दिवस पर पुस्तको की वेदना
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कुछ झूठ की दुकान लगाए बैठे है
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शादीशुदा कुंवारा (हास्य व्यंग)
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हनुमान जयंती पर कुछ मुक्तक
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कौन किसके बिन अधूरा है
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दिल से निकले हुए कुछ मुक्तक
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तेरे दिल में कोई और है
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तीन शिक्षाप्रद मुक्तक
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किस्मत और जिंदगी पर मुक्तक
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तेरी यादों की खुशबू
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प्यार भरा मुक्तक
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तड़फन भरे कुछ मुक्तक
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मिया बीबी की खट पट
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कविता पर कुछ मुक्तक
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होली मिलन पर मुक्तक
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तुम मेरे बादल हो,मै तुम्हारी काली घटा हूं
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इशारों इशारों में ही मेरा दिल चुरा लेते हो
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रिश्तों की महत्ता
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तुम्हारी तस्वीर को छिपाया है दिल में मैने
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