Jai Prakash Srivastav 37 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid Jai Prakash Srivastav 25 Aug 2024 · 1 min read गज़ल तुम्हारी याद ये, तन्हाईयां होने नहीं देती। हमारी सादगी रुसवाइयां होने नहीं देती।। जमाने भर में चर्चा है तुम्हारी बेवफाई का। यही बातें मुझे रातों में अब सोने नहीं देती।।... Hindi 46 Share Jai Prakash Srivastav 6 Aug 2024 · 1 min read गज़ल बेगुनाही खड़ी हाथ मलती रही। फैसले में सजा कलमें लिखती रही।। खून पानी बना है जरा देखिए। हंसता वह रहा वो सिसकती रही।। आदमी आदमी ना रहा अब यहां। आदतें... Hindi 71 Share Jai Prakash Srivastav 28 Jun 2024 · 1 min read गज़ल 2122 1212 22 आज ये दिल उदास सा क्यों है। झुक रहा इतना आसमा क्यों है।। हम नहीं खुश नसीब थे इतने। मुझ पे वो इतना मेहरबां क्यों है।। रात... Hindi 75 Share Jai Prakash Srivastav 10 Jun 2024 · 1 min read गज़ल रोशनी देख कर हम इधर आ गये। भूल हमसे हुई हम किधर आ गये।। आम इंसान की बात हम क्या करें। अब यहां चींटियों के भी पर आ गये।। बंद... 60 Share Jai Prakash Srivastav 27 May 2024 · 1 min read कुछ अभी शेष है प्रतीक्षारत हैं कुछ सांसें, कुछ सपने जीवित हैं। यद्यपि हार गये हैं हम, पर जीत की इच्छा, कुछ अन्तर्मन में जीवित हैं।। थे कुछ सपने कल के, कुछ आज के... Hindi · कविता 73 Share Jai Prakash Srivastav 27 May 2024 · 1 min read गीत आज भी सूरत देखकर सम्मान मिलता है, सच कहने वाले को सदा अपमान मिलता है।। एक सच देखा है बदनाम जगहों पर हमेशा, पहले आने वाले को उचित स्थान मिलता... Hindi 80 Share Jai Prakash Srivastav 9 May 2024 · 1 min read ग़ज़ल ख्वाब झूठे सही पर सजाना पड़ा। जीत कर खेल में हार जाना पड़ा ।। लोग शायद यहां सब परेशान हैं । चोट खाई मगर मुस्कुराना पड़ा ।। आज घायल यहां... 70 Share Jai Prakash Srivastav 9 May 2024 · 1 min read काश! सिद्ध यदि मैं कर पाता, अपने होने के होने को। पुनः अलंकृत कर लेता, रिक्त हृदय के कोने को।। फिर के आती ऋतुएं , आंचल में मधुमास लिए, ललचाती फिर... Hindi 59 Share Jai Prakash Srivastav 9 May 2024 · 1 min read गीत मेरी आंखों के आंसू, तुम को जो दिख जाते। जाते-जाते सहसा ही, तुम जो रूक जाते ।। इस मलिन ह्रदय की , आशा ज्योति न बुझती, टूट चुकी सांसों की,... Hindi 60 Share Jai Prakash Srivastav 5 May 2024 · 1 min read कलयुग का प्रहार मद में डूबा है संसार। मचा है चंहुदिश हाहाकार। मानवता व नैतिकता पर, हुआ भंयकर कलि प्रहार। छूट रहा है घर परिवार, टूट रहा साझा परिवार, स्वार्थ में जग डूबा,... "संवेदना" – काव्य प्रतियोगिता 76 Share Jai Prakash Srivastav 5 May 2024 · 1 min read ग़ज़ल भला बस्ती कहां है वो, जहां इंसान रहते हैं। जहां इक साथ में हिन्दू व मुसलमान रहते हैं।। हमारे दरमियां ये जो बढ़े हैं फासले हमदम। हमारे बीच में आकर... Poetry Writing Challenge-3 1 50 Share Jai Prakash Srivastav 5 May 2024 · 1 min read नारी हे नारी, तू कितनी भोली तू कितनी न्यारी है। रणचण्डी काली होकर भी, तू जग को प्यारी है।। रूप अनेकों है तेरे, तू प्रेम की मूरत है । सौ बार... Poetry Writing Challenge-3 69 Share Jai Prakash Srivastav 5 May 2024 · 1 min read कुछ देर पहले भयंकर विनाशक तूफान, गुजरा इस गली से, अभी कुछ देर पहले । गूंजती किलकारियां थी, बाजार थे भरे हुए हाथों में हाथ डाले युवा जोड़े थे उद्यान में अभी कुछ... Poetry Writing Challenge-3 73 Share Jai Prakash Srivastav 5 May 2024 · 1 min read उद्गगार शब्द नहीं मिलते कैसे बतलाऊँ हृदय के उदगारों को, दूँ बुझा या जलने दूँ काया में, जलते अंगारों को। उठती है जब जब नजरें, सब ओर अंधेरा होता है, क्यों... Poetry Writing Challenge-3 1 49 Share Jai Prakash Srivastav 5 May 2024 · 1 min read नीम का पेड़ आज कटेगा ! आज मिटेगी' पहचान इस घर की जो था कभी पुरखों की शान वह पेड़ नीम का।। जिसने देखी ' कितनी चौपालें जिसकी डाली पर पड़े थे, झूले... Poetry Writing Challenge-3 1 42 Share Jai Prakash Srivastav 5 May 2024 · 1 min read ब्यथा हे राही तू ढूंढ रहा क्या ?क्या भूल गया तू राह ? या नहीं रही अब तेरी आगे चलने की चाह। तू है कौन मुसाफिर कौन देश का वासी ?... "संवेदना" – काव्य प्रतियोगिता 58 Share Jai Prakash Srivastav 5 May 2024 · 1 min read जीवन निर्झरणी मैं जीवन निर्झरणी हूं। कल-कल बहती रहूती हूँ।। मुझको अंगीकार करो तुम। या न अंगीकार करो, प्रकृति मेरी है, चलने की मैं तो चलती रहती है। हर पल मेरा प्रेम... Poetry Writing Challenge-3 1 34 Share Jai Prakash Srivastav 5 May 2024 · 1 min read प्रेम पथिक मैं परदेशी मैं क्या जानूं प्रेम जगत की भाषा। दीवाना हो फिरूं जगत में मन में लेकर प्रेम पिपासा। आहत' हूँ थोड़ा सा थोड़ा विचलित भी हूं मैं। नया पथिक... Poetry Writing Challenge-3 1 40 Share Jai Prakash Srivastav 5 May 2024 · 1 min read चिंगारी गहन तिमिर में, झिलमिलाती वह नंही चिनगारी, बहुत कठिन है इसे समझना, येसंकेत हैभीषण जवाला की या किसी झोपड़ी काआशादीप । सृष्टि बनी जादूगर की झोली मानव ने पहना चेहरे... "संवेदना" – काव्य प्रतियोगिता 57 Share Jai Prakash Srivastav 5 May 2024 · 1 min read मेरी कविता कभी न आई कविता मुझको। और छंद कभी नहीं आया है। मैं लिखता बस मन की बातें। कुछ और मुझे नहीं आया है। न राजा की और न प्रजा की।... Poetry Writing Challenge-3 1 36 Share Jai Prakash Srivastav 5 May 2024 · 1 min read नज़्म तू ही बता ऐ दिल, में क्या करूं। कुछ बदली-बदली सी बादेसबा। तश्नगी का दौर है तलब बढ़ी हुई। बंद मैकदे के किवाड़, मैं क्या करूं? शबनम भी तड़प रही... Poetry Writing Challenge-3 80 Share Jai Prakash Srivastav 5 May 2024 · 1 min read याद तुम्हारी याद तुम्हारी फिर आई, आज बैठ अमराई में। कितना फीका सा लगता है, सावन भी तन्हाई में। नहीं सुगंध फूलों में अब, पंखुड़ियों में वो रंग नहीं, जाने कैसे जीता... Poetry Writing Challenge-3 1 40 Share Jai Prakash Srivastav 5 May 2024 · 1 min read क्या आज हो रहा है? कोई मुझे बता दें क्या आज हो रहा है। इंसान से लिपट के क्यों इंसान रो रहा है। हवा बता रही है घर कोई जल रहा है। सारे जहां के... Poetry Writing Challenge-3 1 39 Share Jai Prakash Srivastav 4 May 2024 · 1 min read ग़ज़ल खुद को अपना चेहरा नजर नहीं आता। घर की छत से वो घर नजर नहीं आता।। रातों दिन औरों पर तवज्जो है सबकी। अपना ऐब किसी को नजर नहीं आता।।... Poetry Writing Challenge-3 59 Share Jai Prakash Srivastav 4 May 2024 · 1 min read खुशी आतुर तेरे आलिंगन को। मैं ही नहीं जग सारा है । अपनी मृगतृष्णा में तूने । जाने कितनों को मारा है।। आती है तू नित सपनों में। नित नूतन श्रृंगार... Poetry Writing Challenge-3 41 Share Jai Prakash Srivastav 4 May 2024 · 1 min read ग़ज़ल उठ रहा अब ज़माने में ये शौर है। वो समय और था ये समय और है।। तोड़ दी है कसम कल सुना चांद ने। तीरगी का ये आया अजब दौर... Poetry Writing Challenge-3 38 Share Jai Prakash Srivastav 4 May 2024 · 1 min read आ फिर लौट चलें आ अब फिर चलें लौट कर। अपने उस सुन्दर से गांव में । चल बैठे फिर चल कर हम । पनघट के पीपल की छांव में।। हम हो गए पागल... Poetry Writing Challenge-3 1 2 48 Share Jai Prakash Srivastav 4 May 2024 · 1 min read अनमोल रतन पीड़ा है अनमोल रतन। कीमत इसकी न्यारी है। नहीं चाहता कोई पीड़ा। पर ये सबको प्यारी है।। पीड़ा ली थी दशरथ ने। भारी मूल्य चुकाया था। भेज राम सिया को... Poetry Writing Challenge-3 83 Share Jai Prakash Srivastav 4 May 2024 · 1 min read गीत मेरी कहानी मेरा फ़साना जाना, तुमने सुना तो होगा। होंठ मुस्कुरायें होंगे तेरे, आंखों से आंसू गिरा तो होगा।। मिली है मंजिल किसे जहां में, जानिब उसकी चले बिना। होगा... Poetry Writing Challenge-3 37 Share Jai Prakash Srivastav 4 May 2024 · 1 min read नज़्म क्यों मचलती है बादेसबा। क्यों ये वादियां बेताब है। अब बेनूर चांद भी हो चला। कहां गया ये आफताब है।। क्या हैं बेवजह बेताबियां? क्यों शहर में इतना खौफ है।... Poetry Writing Challenge-3 55 Share Jai Prakash Srivastav 4 May 2024 · 1 min read गीत ख्वाब गये टूट सब ज़िन्दगी बिखर गई। साथ छोड़ा राह ने मंजिलें फिसल गई। मैं तो था गुमान में, पर जिन्दगी उदास थी। ख्वाहिशें जवान थी और दिल में प्यास... Poetry Writing Challenge-3 46 Share Jai Prakash Srivastav 4 May 2024 · 1 min read शब्दहीन स्वर शब्दहीन वे मीठे स्वर तेरे स्पंदित कर रहे आज भी मन को मेरे। खो जाता हूं मृदुल याद में नित जब आते हैं मलय समीर के शीतल झोंके खिल के... Poetry Writing Challenge-3 39 Share Jai Prakash Srivastav 4 May 2024 · 1 min read तुम क्या जानो आई हो तुम बन पुरवाई, आंचल में मधुमास लिये। निज छवि की सुंदरता का, तुम्हें कहां आभास प्रिये। हृदय तुम्हारा प्रेम का सागर, तुम फूलों की बगिया हो। क्या हो... Poetry Writing Challenge-3 69 Share Jai Prakash Srivastav 4 May 2024 · 1 min read शायद रोया है चांद सुबह टहलते हुए जा पंहुचा मैं अपने खेतों में। गेहूँ की पत्ती पर सरसों के पत्तों पर, धवल चमकती बूंदो को, देख कर मैंने सोचा, शायद रोया है चाँद ॥... Poetry Writing Challenge-3 35 Share Jai Prakash Srivastav 4 May 2024 · 1 min read अब क्या खोना गहरे सागर की गहराई का। वह निर्जन सूना सा कोना। मेरे सपनों का निश्चल होकर। उस छोटे से कोने में सोना । कायरता ही तो कहलायेंगी। कर्तव्य विमुख हो कर... Poetry Writing Challenge-3 39 Share Jai Prakash Srivastav 4 May 2024 · 1 min read मुखर मौन मेरे शब्दों के मुखर मौन को। तुम न समझो तो समझेगा कौन। मेरी असहय वेदना की ब्यापकता। तुम न समझो, तो समझेगा कौन। हाथ पकड़ कर जीवन पथ पर! तुमने... Poetry Writing Challenge-3 1 46 Share Jai Prakash Srivastav 4 May 2024 · 1 min read गीत अव करो समाहित मुझको । तुम अपने में मिल जाने दो। भटक रही इस सरिता को । गहरा सागर बन जाने दो। घोर ताप से जलती वगिया । 'फूल पात... Poetry Writing Challenge-3 1 45 Share