DrRaghunath Mishr Tag: कविता 9 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid DrRaghunath Mishr 23 Dec 2016 · 1 min read मनहरण घनाक्षरी नववर्ष मनहरण घनाक्षरी -नववर्ष ००० रोज-रोज नया वर्ष, रोज ही मनाएँ हर्ष, पा जाएं हम उत्कर्ष, उच्च ए आदर्श है। जिन्दगी का हो विकास, दिल धरती आकाश , खुश रहे... Hindi · कविता 1 1 269 Share DrRaghunath Mishr 30 Dec 2016 · 2 min read डॉ.रघुनाथ मिश्र 'सहज' की कुछ रचनाएँ. कुण्डलिया 000 जागो प्रियवर मीत रे ,कहे सुनहरी भोर. चलना है गर आपको , सुखद लक्ष्य की ओर. सुखद लक्ष्य की ओर ,बढेगें अगर नही हम. विपदा होय अभेद्य ,न... Hindi · कविता 1 1 370 Share DrRaghunath Mishr 2 Jan 2017 · 1 min read हरगीतिका- मात्रा भार 28 संसार के दुख-दर्द का है, अंत आखिर अब कहाँ। खुशियाँ बाँटें विश्व को, ऐसे हैं माहिर अब कहाँ। अवकाश लेकर बैठने में,फायदा क्या है भला, जो बात अंदर ही दबी... Hindi · कविता 316 Share DrRaghunath Mishr 2 Jan 2017 · 1 min read .मुक्त छंद रचना: बेटी माँ - बाप की आँखों का नूर पिता का स्वाभिमान समाज का सम्मान कल-कारखानों में खेतों-खलिहानों में दफ्तरों-विभागों में कहाँ नहीं हैं बेटियाँ हमारी फिर क्यों आखिर क्यों जवाब दे... Hindi · कविता 492 Share DrRaghunath Mishr 2 Jan 2017 · 1 min read बेटी-छंद मुक्त कविता घर परिवार माता-पिता दो-दो घरों की रौनक होती है बेटी. समाज की शान देश का उत्थान परिवार का अभिमान ख़ुद में खानदान धरती-आससमान कुटुंब की आन घर की पहिचान श्रृष्टि... Hindi · कविता 757 Share DrRaghunath Mishr 5 Jan 2017 · 2 min read मुक्त छंद कविता हंस की अंतर्ध्वनि : 000 मैं खुश हूँ 000 जिन्दगी! शुक्रिया तेरा मुझे इंसान नहीं बनाया. मैं खुश हूँ इस रूप में परमात्मा का भी हार्दिक आभार हंस हूँ मैं... Hindi · कविता 2k Share DrRaghunath Mishr 17 Jan 2017 · 1 min read अक्षम्य है परिणाम गलती का गलत ही होगा अंततः जानकर की गई गलती अक्षम्य है विवेक है हममें ईश्वर प्रदत्त फिर भी गलती पर गलती सोचें किधर-क्यों चलते जा रहे हैं जान-बूझ... Hindi · कविता 283 Share DrRaghunath Mishr 23 Jan 2017 · 1 min read यदि कोयल की कूक मयूर की थिरक रिमझिम सावन की खुशबू मधुबन की सच है बहुत प्यारी लगती हैं यदि पेट भरे हों तन ढके हों मौसम अनुकूल हों टूटता है... Hindi · कविता 244 Share DrRaghunath Mishr 11 May 2017 · 1 min read कालजयी बन जाओ कालजयी बन जाओ: एक यथार्थ परक मुक्त छन्द कविता-समीक्षार्थ: अभी -अभी स्वानुभव पर आधारित, विशिष्टतया नकारात्मक सोच वालों के नाम पाती. विमर्श के लिए" 000 प्रतिक्रिया से बचने का डर... Hindi · कविता 402 Share