दीपक चौबे 'अंजान' Tag: कविता 6 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid दीपक चौबे 'अंजान' 9 Feb 2018 · 1 min read स्वयं ही अभिव्यंजना है संसार की हर गतिविधि, स्वयं ही अभिव्यंजना है । तुम भले कुछ भी कहो, याकि चुप रूठे रहो । वातावरण में घोल दी, साँसो ने ख़द व्यजंना है । सृष्टि... Hindi · कविता 269 Share दीपक चौबे 'अंजान' 9 Feb 2018 · 1 min read हर क्षण कृतार्थ हो । जीवन का, हर क्षण कृतार्थ हो । हृदय-कर्म, भावना-परमार्थ हो । पग-पग पर, जब सफ़र करें तो, दृष्टि में बस यथार्थ हो । रिश्तों से, खिल उठेगा जीवन । पुष्पों... Hindi · कविता 569 Share दीपक चौबे 'अंजान' 9 Feb 2018 · 1 min read धीरे-धीरे......... धीरे-धीरे पूरी तरह, बेक़ार हो रहा हूँ । एक कचरे के डिब्बे-सा, पड़ा रहता हूँ कोने में । सारी प्रतिभाएँ/कलाएँ, जूठी पत्तलों-सी भरी हैं । दुर्दैव के कौए, अपना भोजन... Hindi · कविता 414 Share दीपक चौबे 'अंजान' 9 Feb 2018 · 1 min read हाँ ! सक्षम हूँ हाँ ! सक्षम हूँ तब से अब तक, महाप्रलय के आ-जाने तक । अथक परिश्रम करती देखो, शिशु भारत के परिपोषण को, नित जीती नित मरती देखो, मैं अपना ख़ुद... Hindi · कविता 1 1 429 Share दीपक चौबे 'अंजान' 8 Feb 2018 · 1 min read कभी जलते हैं हम संध्या होते ही रोज़ सुलगते हैं हम चूल्हे के संग में। रोटियों की तरह कभी फूल जाते हैं कभी जलते हैं हम । उन्हें तो मैं खा लेता हूँ और... Hindi · कविता 386 Share दीपक चौबे 'अंजान' 8 Feb 2018 · 1 min read vandna माँ शारदे अर्पण सदा ही, सुमन-मन स्वीकार हो । रस-छंद-भूषण-भाव-कविता, सहज अंगीकार हो । निर्मल-हृदय कर प्रेम-पूरित, वासना न विकार हो । कर लय अबाधित शब्द-साधित, शक्ति-गुण भंडार हो । Hindi · कविता 286 Share