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बेहतर है गुमनाम रहूं,
Amit Pathak
ऐसे लहज़े में जब लिखते हो प्रीत को,
Amit Pathak
क्या देखा है मैंने तुझमें?....
Amit Pathak
है कौन झांक रहा खिड़की की ओट से
Amit Pathak
मौसम बेईमान है – प्रेम रस
Amit Pathak
तू है एक कविता जैसी
Amit Pathak
किसी रोज मिलना बेमतलब
Amit Pathak
कुछ यूं हुआ के मंज़िल से भटक गए
Amit Pathak
शब्दों का गुल्लक
Amit Pathak
जिंदगी की फितरत
Amit Pathak
दंग रह गया मैं उनके हाव भाव देख कर
Amit Pathak