अजय कुमार मिश्र Tag: कविता 13 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid अजय कुमार मिश्र 21 Jan 2017 · 1 min read काँटों पर चलने की तो मेरी फ़ितरत हो गयी जब मैं पाया उसको ही सारी राह में बिखरे हुए काँटों पर चलने की तो मेरी भी फ़ितरत हो गयी/ जब मैं चाहा बन चिराग़ दुनिया को रोशन करूँ इन... Hindi · कविता 1 1 320 Share अजय कुमार मिश्र 21 Jan 2017 · 1 min read पुत्रियाँ पुत्र की चाहत,हो उसी की बादशाहत हमारे समाज की यही मनोवृत्ति है, पुत्री के जन्म पर होना झल्लाहट, नारी के प्रगति में बनी हुयी भित्ति है। हमने सारे सपने पुत्र... "बेटियाँ" - काव्य प्रतियोगिता · कविता · बेटियाँ- प्रतियोगिता 2017 2k Share अजय कुमार मिश्र 1 Feb 2017 · 1 min read ऋतु बसन्त आ ही गया है वसुधा का श्रृंगार किया है नूतन उमंग नव आस लिए ऋतु बसन्त आ ही गया है जीवन में तो उल्लास लिए। सूरज की तंद्रा अब भंग हुई शीत की चुभन... Hindi · कविता 284 Share अजय कुमार मिश्र 2 Feb 2017 · 1 min read ज़िंदगी की दौड़ ज़िंदगी बढ़ रही आगे-आगे , आगे -आगे, मैं इसके ही पीछे दौड़ रहा भागे-भागे,भागे-भागे। पर पकड़ न पाता, क्योंकि कभी रफ़्तार, इसकी होती तेज़ और कभी दिखता ही नहीं रास्ता।... Hindi · कविता 251 Share अजय कुमार मिश्र 8 Feb 2017 · 1 min read कविता भी बनी प्रोडक्ट है अजब है दुनिया यहाँ चलती का नाम ही गाड़ी है, चलते-चलते ठहर गया जो वो तो राहों का अनाड़ी है। अब तो ये दुनिया बनी ही बाज़ार है आकर्षित आवरण... Hindi · कविता 576 Share अजय कुमार मिश्र 9 Feb 2017 · 1 min read ज़िंदगी की राह आसान हो जाए हो हौसला तो मुश्किलें परेशान हो जायें, राह की बाधाएँ ही ख़ुद हैरान हो जायें, हर हाल में होंठों पे जो मुस्कान आ जाये, फिर ज़िंदगी की राह तो आसान... Hindi · कविता 229 Share अजय कुमार मिश्र 9 Feb 2017 · 1 min read ये जीवन है चंद वर्षों की ये जीवन है चंद वर्षों की , फ़िक्र में क्यूँ इसे गुज़ारूँ मैं, हक़ीक़त से रु-ब-रु होकर, क्यूँ न हर पल इसे सँवारू मैं। कर्मों को निखार करके ही ,... Hindi · कविता 390 Share अजय कुमार मिश्र 9 Feb 2017 · 1 min read अभिलाषा के पंख फैलाओ अभिलाषा के पंख फैलाओ कर्मों का विस्तार करो, स्वेद बिंदुओं से सिंचित कर सपनों को साकार करो। मिलता उसको तो उतना ही जितना ही वो कर्म किया, जीवन को समझा... Hindi · कविता 392 Share अजय कुमार मिश्र 13 Feb 2017 · 1 min read थोड़ी राह ही शेष है पाँव में छालें बहुत हैं , दूर तक कैसे चलूँ , पथ तो है अग्नि सरीखा , पार अब कैसे करूँ । पाँवों के मेरे ये छालें, मुझसे लेकिन कह... Hindi · कविता 326 Share अजय कुमार मिश्र 14 Feb 2017 · 1 min read एक मुक्तक एक मुक्तक ख़याल ही अब तो बे ख़याल हो गए जवाब भी अब तो ख़ुद सवाल हो गए जिनकी ख़ातिर मैंने लूटाया ख़ुद को उन्हीं की निगाह में हम कंगाल... Hindi · कविता 265 Share अजय कुमार मिश्र 15 Feb 2017 · 1 min read देती है मुझे मौन वेदना शब्दों की तराश करता हूँ, गीत नए-नए ही बुनता हूँ, जिन राहों में बिखरे काँटे हों, ऐसी डगर ही चुनता हूँ। है मेरी दु:साध्य साधना , देती है मुझे मौन... Hindi · कविता 358 Share अजय कुमार मिश्र 15 Feb 2017 · 1 min read ऐ ज़िन्दगी, तूने बनाया ही कितना रूप है ऐ ज़िंदगी , तूने तो बनाया ही कितना रूप है, कैसे-कैसे रंग अब तक मुझको दिखाती रही। समझ आया नहीं मुझको तेरा ये फ़लसफ़ा, किसी को दिया बहुत, किसी को... Hindi · कविता 185 Share अजय कुमार मिश्र 28 Apr 2017 · 1 min read दो माचिस की डिबिया ये लाइक भी ले लो ये माइक भी ले लो भले छीन लो मुझसे संचार यंत्र ये ज्ञानी। मगर मुझको लौटा दो वो बचपन का साधन दो माचिस की डिबिया... Hindi · कविता 598 Share