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कोई समझ नहीं पाया है मेरे राम को
Aadarsh Dubey
बिल्कुल नहीं हूँ मैं
Aadarsh Dubey
फ़ुर्सत में अगर दिल ही जला देते तो शायद
Aadarsh Dubey
मेरी आँखों से भी नींदों का रिश्ता टूट जाता है
Aadarsh Dubey
उदास आँखों से जिस का रस्ता मैं एक मुद्दत से तक रहा था
Aadarsh Dubey
कौन पंखे से बाँध देता है
Aadarsh Dubey
कुछ इस लिए भी आज वो मुझ पर बरस पड़ा
Aadarsh Dubey
उसको भी प्यार की ज़रूरत है
Aadarsh Dubey
वो सुन के इस लिए मुझको जवाब देता नहीं
Aadarsh Dubey
मैं जिसको ढूंढ रहा था वो मिल गया मुझमें
Aadarsh Dubey
अब और ढूंढने की ज़रूरत नहीं मुझे
Aadarsh Dubey
सीने में मेरे आग, बगल में शराब है
Aadarsh Dubey
डरने लगता हूँ...
Aadarsh Dubey
होली...
Aadarsh Dubey
कहाँ समझते हैं ..........
Aadarsh Dubey
ग़ज़ल
Aadarsh Dubey
•ग़ज़ल•
Aadarsh Dubey