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अपनी समझ और सूझबूझ से,
आचार्य वृन्दान्त
एक पीर उठी थी मन में, फिर भी मैं चीख ना पाया ।
आचार्य वृन्दान्त
ना देखा कोई मुहूर्त,
आचार्य वृन्दान्त