बेटियाँ तो बाबुल की रानियाँ हैं
मन का मृदंग हैं, भाव हैं, तरंग हैं, कल्पनाओं की पतंग हैं निर्झर, निर्मल, नेह भरी, ये वात्स्ल्य पूर्ण रवानियाँ हैं फिर भी बोलो आखिर क्यों ये, सबकी पहली परेशानियाँ...
"बेटियाँ" - काव्य प्रतियोगिता · कविता · बेटियाँ- प्रतियोगिता 2017