Sushant Verma 10 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid Sushant Verma 7 Oct 2017 · 1 min read दो गज का कफ़न बातें तो थी हीरों की, मिट्टी का ये तन लेकर! रुख़सत जो हुआ तो बस,दो ग़ज़ का कफ़न लेकर!! इक पल भी नहीं लगता, पत्थर के शहर में दिल! जाऊँ... Hindi · कविता 589 Share Sushant Verma 19 Sep 2017 · 1 min read दम तोड़ती भुखमरी आसरा हो जो तेरे दीदार का है इलाजे मर्ज़ इस बीमार का पा बुलन्दी शोहरतों के रास्ते करना मत सौदा मगर क़िरदार का हौसला ग़र होगी हासिल जीत भी शोक... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 238 Share Sushant Verma 18 Sep 2017 · 1 min read ऑंखें जाने क्या ये पिला गईं आँखें इक नशा सा चढ़ा गईं आँखें मौन थे वो तो मौन हम भी रहे हाल दिल का जता गईं आँखें इतनी शातिर ये होंगी... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 327 Share Sushant Verma 17 Sep 2017 · 1 min read दिल का वीरां नगर जो तुम तीरगी रहगुज़र देख लेना जला मैं मिलूँगा ठहर देख लेना कभी चाहा था तुमने तो जाते जाते पलट कर ज़रा इक नज़र देख लेना क़दम दर क़दम देखना... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 211 Share Sushant Verma 17 Sep 2017 · 1 min read किताबी जीवन ये जीवन किताबी जिये जा रहे हैं वरक़ रोज़ सादे जुड़े जा रहे हैं तमन्ना थी जो आ ख़बर ख़ैर लेते मेरा हाल बिन वो सुने जा रहे हैं ले... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 348 Share Sushant Verma 16 Sep 2017 · 1 min read सिमटी ख्वाईश क्या कमी बोलो ज़िन्दगी की है ख़ुद बुने जाल में ये उलझी है छोड़ आधी को धावे पूरी को सिमटी ख़्वाहिश न आदमी की है क्यों परेशां हों सोच कल... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 503 Share Sushant Verma 14 Sep 2017 · 1 min read बसे हो दिल में कितना कुछ कहना रहता है लब तक आ ठहरा रहता है कह कर तुमको खो न दें हम हरदम ये खटका रहता है तुम मिल जाओ ये हो वो हो... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 304 Share Sushant Verma 13 Sep 2017 · 1 min read इंसान का मजहब बैठे सब खुद का लिये किसको सुनाया जाए अपना गम लेके कहीं और न जाया जाए भेद कोई न हो इंसान रहें सब हो कर एक मज़हब कोई ऐसा भी... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 519 Share Sushant Verma 13 Sep 2017 · 1 min read मैं एक दरिया हूँ है हासिल जो वो भी थोड़ा नहीं है ये भी बहुतों ने तो पाया नहीं है समंदर सा नहीं क़द मेरा तो क्या मैं इक दरिया हूँ जो खारा नहीं... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 311 Share Sushant Verma 12 Sep 2017 · 1 min read एक ग़ज़ल यूँ ज़िन्दगी तू मुहाल मत कर इसे तू ख़्वाहिश का जाल मत कर रहेगा चुप जो तो जी सकेगा तू मौन रह बस सवाल मत कर निखार क़िरदार ही बस... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 305 Share