संजय सिंह Tag: ग़ज़ल/गीतिका 60 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid Previous Page 2 संजय सिंह 8 Feb 2017 · 1 min read II डगर आसान हो जाए II सफर में बच के तू रहना कहीं ना रात हो जाए l तेरी जो दौलते असबाब ही जंजाल हो जाए ll ठिकाना ढूंढना अपना समय रहते यहां पर तुम l... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 287 Share संजय सिंह 8 Feb 2017 · 1 min read # धूप छांव # छांव तो है एक छलावा, धूप मन का है भरम l रात या दिन कर रहे, दोनों के है अपने करम ll धूप में टपके पसीना, जो कभी तेरे बदन... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 555 Share संजय सिंह 7 Feb 2017 · 1 min read वोट अपना कीमती हादसों पर हादसे होते रहे l नींद में पर रहनुमा सोते रहे ll आज फिर ऊंचा तिरंगा हो गया l वादे उसके हम साथ ढोते रहे ll आ गए फिर... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 372 Share संजय सिंह 7 Feb 2017 · 1 min read तेरा जादू मोदी तेरा जादू मोदी बड़ा हो गया l यहां पर बखेड़ा खड़ा हो गया ll भरे नोट बोरी में सड़ते यहां l तिजोरी का ताला खुला हो गया ll जहां हम... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 407 Share संजय सिंह 7 Feb 2017 · 1 min read सारे फरेब बिसात है बिछी ,वह खेल रहा है l सारे फरेब दिल , झेल रहा है ll हम प्यादे वह ,बजीर बादशाह l जीत किसकी ,कोई खेल रहा है ll मर... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 337 Share संजय सिंह 5 Feb 2017 · 1 min read ग़ज़ल होती है खो के सब कुछ भी मिले जो वो ग़ज़ल होती है l नींद आंखों से उड़ा दो तो गजल होती है ll लोग शब्दों से बयां करते जज्बातों को l... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 681 Share संजय सिंह 4 Feb 2017 · 1 min read लोकतंत्र की अवाम यूं हक लोकतंत्र का अता होता ही रहा l रोशनी मिलती रही घर जलता ही रहा ll जड़ों में थी दीमक हवा में धुंआ भी l ऐसे पौधे को लहू... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 375 Share संजय सिंह 3 Feb 2017 · 1 min read ए मन मेरा हुआ चंचल ए मन मेरा हुआ चंचल न जाने क्यों बहकता है l मेरे घर के रहा जो सामने छत पर टहलता है ll समा है चांदनी रातों का उसपर मेघ काले... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 392 Share संजय सिंह 2 Feb 2017 · 1 min read जो वादा किया तिलक माथे जनता सजाते नहीं है l जो वादा किया वो निभाते नहीं हैं ll भले इनसे तो हैं कसाई के बेटे l झूठा प्यार कोई जताते नहीं है ll... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 574 Share संजय सिंह 1 Feb 2017 · 1 min read गुजरा हुआ जमाना दिनों के बाद गुजरा सामने से आशियाने के l मिले फिर से कई किस्से मुझे बीते जमाने के ll मिली सूनी पड़ी कोई हवेली राह तकती सी l मिले सूखे... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 766 Share Previous Page 2