Rakesh Pandey Tag: कविता 2 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid Rakesh Pandey 8 Aug 2017 · 1 min read चमका फिर से सूरज नवीन धरती को करने तम-विहीन चमका फिर से सूरज नवीन उल्लास लिये संचरित हुए गतिमय शनैः फिर त्वरित हुए मानव, खग-मृग, पशु, विटप, मीन चमका फिर से सूरज नवीन किलकारी भरते... Hindi · कविता 473 Share Rakesh Pandey 7 Aug 2017 · 1 min read अपना पथ स्वयं बनाना है हिमगिरि से लेकर सागर तक बनकर प्रवाह बढ़ जाना है हे अविरल, अविचल जल तुमको अपना पथ स्वयं बनाना है थलचर या जलचर जीव-जन्तु जल, चाहे नभचर हों परन्तु हर... Hindi · कविता 550 Share