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दुख दें हमें उसूल जो, करें शीघ्र अवसान .
RAMESH SHARMA
देख ! सियासत हारती, हारे वैद्य हकीम
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तबियत मेरी झूठ पर, हो जाती नासाज़.
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रहे मुदित यह सोच कर,बुद्धिहीन इंसान
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बदल गई है प्यार की, निश्चित ही तासीर।।
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भरा कहां कब ओस से किसका कभी गिलास
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जीवन में रहता नहीं,जिसके जोश उमंग
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थूकोगे यदि देख कर, ऊपर तुम श्रीमान
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सत्यानाशी सोच जिमि,खड़ी फसल पर मेह .
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होशियार इंसान भी ,बन जाता मतिमंद
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बांटेगा मुस्कान
RAMESH SHARMA
नही रहेगा मध्य में, दोनों के विश्वास
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चाहे जितना भी रहे, छिलका सख्त कठोर
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जिनका मैंने हर समय, रखा हृदय से ख्याल
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करते हो करते रहो, मुझे नजर अंदाज
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बिना पढ़े ही वाह लिख, होते हैं कुछ शाद
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खाए खून उबाल तब , आए निश्चित रोष
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दिल के जैसा आज तक, नजर न आया खेत
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संस्कार की खिड़कियां, हुई जरा क्या बंद
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सीखा रहा उड़ना मुझे, जिस गति से सैयाद ।.
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हो जाती हैं आप ही ,वहां दवा बेकार
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आंखे सुनने लग गई, लगे देखने कान ।
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ओढ दुशाला श्याम का, मीरा आर्त पुकार
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गई सुराही छूट
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धरा दिवाकर चंद्रमा
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साहित्यिक व्यापार
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औषधि की तालीम
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नही तनिक भी झूठ
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मिले मुफ्त मुस्कान
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समझेंगे झूठा हमें
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खुद को कहें शहीद
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रिश्ता मेरा नींद से, इसीलिए है खास
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कैसे पचती पेट में, मिली मुफ्त की दाल।.
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मर जाओगे आज
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गौरव से खिलवाड़
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आप मुझे महफूज
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वादा करके तोड़ती, सजनी भी हर बार
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मंद बुद्धि इंसान,हमेशा मद में रहते
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दया दुष्ट पर कीजिए
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तात शीश शशि देखकर
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नैन सोम रस ग्लास
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स्वाभिमान सम्मान
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न पणिहारिन नजर आई
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होते हैं हर शख्स के,भीतर रावण राम
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दकियानूसी छोड़ मन,
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नारी की लुटती रहे, क्यूँ कर दिन दिन लाज ?
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कीमत रिश्तों की सही,
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चोखा आप बघार
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तिरस्कार के बीज
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मंदबुद्धि का प्यार भी
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