किरण मिश्रा "स्वयंसिद्धा' 8 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid किरण मिश्रा "स्वयंसिद्धा' 2 Sep 2021 · 1 min read "मैं तुम्हें फिर मिलूँगी" कब ,कहाँ और कैसे, पता नहीं...?? किसी शाम,दरिया किनारे शान्त,शीतल,निर्मल जल में पैर डाले घुटनों तक खुद की परछाई से बात करती या तुम्हारे पुराने तैरते उन्हीं अक्स को आज... Hindi · कविता 6 7 441 Share किरण मिश्रा "स्वयंसिद्धा' 2 Sep 2021 · 1 min read 'चले आना मुरारी तुम' *चले आना मुरारी तुम* घिरे जब नेह के बादल, उफनती यमुना हो कलकल, *चले आना मुरारी तुम*, हे! प्रियवर वेणुधारी तुम । बिठाकर पलकों के कुंजन रचाना रास तुम मधुवन... Hindi · गीत 4 5 476 Share किरण मिश्रा "स्वयंसिद्धा' 2 Sep 2021 · 1 min read "मनमोहना" अधर पर बाँसुरी धर कर किया मनमीत हैतुमने, बांधकर नेह छन्दों से, लिखा मधुगीत है तुमने । टूटी मन में जो कलुषित वासना की थी बिषय गगरी, मेरे। मन मोहना... Hindi · मुक्तक 3 1 363 Share किरण मिश्रा "स्वयंसिद्धा' 5 Sep 2021 · 1 min read ख़लिश *खलिश* दिल में कोई तो *ख़लिश* रही होगी, ग़ज़ल उसने जब *दर्द* पे कही होगी ।। यूँ ही नहीं रूठा *माँ का आँचल*, *फ़र्ज* में कुछ तो कमी रही होगी... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 2 1 234 Share किरण मिश्रा "स्वयंसिद्धा' 24 Jan 2017 · 1 min read क्यूँकि हम बेटियाँ हैं रचनाकार-किरणमिश्रा विधा-कविता "क्यूँकि हम बेटियाँ हैं" महकाऊंगी कोख तुम्हारी, बोवोगे गर बेटियाँ! बंजर हो जायेगी सारी दुनिया, मारोगे गर बेटियाँ !! अमूल्य निधि हूँ,मुझको पहचानो दोनों कुल की आन हूँ... "बेटियाँ" - काव्य प्रतियोगिता · कविता · बेटियाँ- प्रतियोगिता 2017 1 2k Share किरण मिश्रा "स्वयंसिद्धा' 6 Feb 2017 · 1 min read "मेरे मन मीत " हाँ तुम चाँद हो मेरी रातों के ! तुम्ही ख्वाब,मेरी नींदों के ! शहद हो तुम,मेरी बातों में ! गुलाब बन महकते हो,मेरी यादों मे ! खिलते हो कमल मेरे... Hindi · कविता 1 456 Share किरण मिश्रा "स्वयंसिद्धा' 13 Apr 2017 · 1 min read तन्हाईयों का बाजार तन्हाईयों का बाजार लगाती हैं तुम्हारी यादें हर शाम ढले........ कभी आओ ना तुम भी.... तुम्हारी.. खुशबूओं से महकता इत्र... तुम्हारी जादुई हसी......से छनकती पायल... तुम्हारी वो सिन्दूरी बिदियाँ... जिसे... Hindi · कविता 1 1 434 Share किरण मिश्रा "स्वयंसिद्धा' 23 Feb 2017 · 1 min read "जादूगर" सुनो जादूगर खिल उठते हैं मेरेे होंठ, तुम्हारी चाहत की चाशनी में डूब, गुलाब की सुर्ख पंखुडी से, जब भी तुम लिखतेे हो, मेरे अधरोष्ठों पर, अपने प्रेम की रसीली... Hindi · कविता 440 Share