Amrita Shukla 9 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid Amrita Shukla 16 May 2024 · 1 min read मुक्ति मुक्ति ढ़लती उम्र के पढ़ाव पर, अपने लिए जीना सीख चुके हम। सुख-दुख से परे होकर, ईश्वरीय स्वरूप को पाकर अब सब माया-मोह से मुक्ति की कामना है। अपने आप... Poetry Writing Challenge-3 1 102 Share Amrita Shukla 15 May 2024 · 1 min read तुम गए कहाँ हो तुम गए कहाँ हो? तुम तो अब भी बसते हो मन में । जीवन के हर एक स्पंदन में । कलियों की कोमल छुअन में । टीसे उन कांटों की... Poetry Writing Challenge-3 162 Share Amrita Shukla 15 May 2024 · 1 min read काफिला काफिला लाख मुश्किलें आएं, और रास्ते दूर लगें । मंज़िल को पाने की कोशिश में जरुर लगें। जीत - हार छोड़कर , आगे बढ़ते जाना है , खुद पर भरोसा... Poetry Writing Challenge-3 81 Share Amrita Shukla 14 May 2024 · 1 min read मुमकिन हो जाएगा ज्योतिष, हाथ की रेखाएं, रत्न, सोने - चांदी की मालाएं , अंगूठियां और कितने टोटके , आगे जाने से क्यों हैं रोकते। कभी मन में ये विचार किया है ?... Poetry Writing Challenge-3 · Poem 70 Share Amrita Shukla 14 May 2024 · 1 min read बिखरा ख़ज़ाना बिखरा ख़जाना ======= पूरब की ओर से सवेरे सूरज ऊगता । तब आसमान लालिमा से भर उठता। दोपहर को उसके भीतर भरता है तेज , शाम पश्चिम में डूब लाल... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 88 Share Amrita Shukla 14 May 2024 · 1 min read -किसको किसका साथ निभाना -किसको किसका साथ निभाना ----'----------------------------------- किसे कौन बँधन में बाँधे ,जीवन तो है आना जाना। संग साथ कौन रहा ,किसको किसका साथ निभाना । सुख में हम खुशियों में जीते... Poetry Writing Challenge-3 67 Share Amrita Shukla 14 May 2024 · 1 min read शरद ऋतु 3-शरद का चंद्रमा बिखेरता है चांदनीं। सितारों से टका आंचल लगे है बांधनीं। शुभ्र, धवल नभ धरा को बाहों में भरता, हवाएं भी छेड़े जा रही हैं कोई रागिनी। शीत... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 59 Share Amrita Shukla 14 May 2024 · 1 min read माँ मां तुमसे बिछड़े, समय बहुत है बीता अब भी लगता है अब तक सब रीता तुम रामचरित मानस के दोहे दुहराती कंठस्थ रहा करती थी भगवत गीता। दिन - भर... Poetry Writing Challenge-3 55 Share Amrita Shukla 28 Nov 2018 · 1 min read वो मेरी माँ वो मेरी माँ मां तुमसे बिछड़े समय बहुत है बीता फिर भी लगता है अब तक सब रीता तुम रामचरित मानस के दोहे दुहरातीं कंठस्थ रहा करती थी भगवत गीता।... "माँ" - काव्य प्रतियोगिता · कविता 5 23 740 Share