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18 Sep 2018 · 1 min read

बस एक मौका

आपसी सद्भाव की हर बात गुजरी हो गई।
बैर इतना बढ़ गया कि आत्मा भी रो गई।।
फासले ऐसे बढ़े बढ़ने लगी हैं दूरियां।
खून के रिश्तों में भी दिखने लगी मजबूरियां।।
त्याग बेबस हो गया चारों तरफ है भोग।
आज कल बस एक मौका ढूंढ़ते हैं लोग।।

आदमी को आदमी का डर सताने अब लगा।
लूटने की चाह में करने लगा है रत जगा।।
मखमली बिस्तर पे भी अब चैन मिलता है नहीं।
वो थकन की नींद देखो खो गई जाने कहीं।।
हर तरफ फैला हुआ है लालचों का रोग।
आज कल बस एक मौका ढूंढ़ते हैं लोग।।

बेटियों के पांव में अब बेड़ियां ही रह गईं।
कतरा कतरा बन के देखो नालियों में बह गईं।।
अब किसी कोने में हर पल हैं सिसकती चूड़ियां।
हर गली में आज देखो खून की हैं होलियां।।
हर किसी के आचरण में अब बसा है ढोंग।
आज कल बस एक मौका ढूंढ़ते हैं लोग।।

अब जमाना रोशनी की आग में जलने लगा।
हर कोई चेहरे बदल कर रोज यूं छलने लगा।।
आज मर्यादा किसी को रोकती है क्यों नहीं।
आंख का पानी लगे यूं मर गया है अब कहीं।।
हर तरफ फैला हुआ है मातमी सा शोक।
आज कल बस एक मौका ढूंढ़ते हैं लोग।।

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