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10 Sep 2018 · 1 min read

जब से आकर शहर में रहता हूँ

जब से आकर शहर में रहता हूँ,
इक अजीब से सफर में रहता हूँ॥

खुल के हँसना व रोना भी मना है
क्यूंकि मै किराये के घर में रहता हूँ॥

पेड़ों के पक्ष से है रिश्ता मेरा गहरा
मै बाहर अक्सर दोपहर में रहता हूँ॥

दोस्त मेरे मुझको देखकर भागते हैं
क्यूंकि मै दुश्मनों की नजर में रहता हूँ॥

हाथ-पाँव मारकर किनारा नहीं मिलता
नदियों में नहीं मै समंदर में रहता हूँ ॥

Zo Zo Sandeep Yadav

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