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10 Sep 2018 · 1 min read

नटखट बंशीवाल

विषय.. कृष्ण
विधा..सार छंद
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नटखट वंशीवाला
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रुप मधुर श्रृंगार है सुंदर,
करते माखन चोरी।
पकड़े जाने पर मनमोहन,
करते क्यों बलजोरी।।

पूछ रही है मैया तो से,
बोलो मेरे लल्ला।
मुख माखन अब भी लिपटा है,
झाड़े कैसे पल्ला।।

अपने घर में सबकुछ है फिर,
क्यों करता है चोरी।
कंकड़ मारे मटकी फोड़े,
कहे नगर की छोरी।।

देख खड़े हालात कृष्ण की,
बलदाऊ मुस्काये।
बाँध तुझे ओखल में मैया,
अब तो सबक सिखाये।।

बँधा कन्हैया माँ संमुख,
दिखता भोला भाला।
देख कोई न समझ सकेगा,
नटखट वंशीवाला।।

हे भगवन यह अद्भुत लीला,
कैसी तेरी माया।
लीला देखा मातृ प्रेम का,
तृप्त हो गई काया।।
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✍✍पं.संजीव शुक्ल “सचिन”

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