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9 Sep 2018 · 3 min read

नीति निपुण योगेश्वर श्री कृष्ण

सर्व नीति निपुण योगेश्वर श्री कृष्ण>>>मौलिक लेख, ===================लेखक करूणानिधि ओझा 8090232543=== जमुना किनारे कदम्ब की डाल पर बैठे मुरलीवाले के मुरली की धुन पर गोपियों का मंत्रमुग्ध होकर तन मन की सुध बिसरा कर मन मोहन के प्रेम में मोहित होकर नृत्य करते हुए प्रेम प्रदर्शन करना हो या फिर राधा एवं अन्य गोप बालाओ के संग रासलीला रसाने की बात हो हर जगह उनकी अद्भुत् अलौकिक लीलाओं का दर्शन होता है। जहाँ एक ओर कृष्ण प्रेम और श्रृंगार रस के अवतार थे तो वही दूसरी तरफ उनसे बड़ा कोई कर्मयोगी और सन्यासी भी नही था। कुरुक्षेत्र में अर्जुन के व्यामोह होने पर योगेश्वर केशव कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश देकर जगतगुरु बन गये थे क्योकि गीता के माध्यम से नारायण कृष्ण ने समस्त जगत को जीने की कलापूर्ण शैली की सीख दी है इतना ही नही महाभारत युद्ध के पूर्व ,युद्ध के दौरान और युद्ध के बाद की नीति को देखकर उनके धर्मनीति, युद्धनीति ,राजनीति और कूटनीति की निपुणता और विलक्षणता का ज्ञान सहज ही हो जाता है। एक पूर्ण गृहस्थ के सर्वगुण उनमे निहित था इसलिए वे सर्वश्रेष्ठ गृहस्थ भी थे।

योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण सोलह कलाओ में प्रवीण सर्वनीति निपुण सम्पूर्ण सृष्टि के कल्याणार्थ और धर्मार्थ धरती पर विष्णु के आठवें अवतार के रूप में , देवकी के आठवें सन्तान बनकर प्रगट हुए थे . जन्मकाल से ही लीलाधर अपनी लीला से सम्पूर्ण जगत को मोहित एवं विस्मित करने लगे थे जिसे देख सुनकर देव दानव और मनुज सभी उन्हें असाधारण तथा अलौकिक बालक समझने लगे थे . वासुदेव देवकी से लेकर नन्द यशोदा तक सभी कान्हा के कारनामो से बहुत चकित और विमोहित थे . कौशल्या की तरह यशोदा भी अपने लल्ला के लालन पालन के दौरान ही उनके दिव्य रूप का दर्शन पा गयी थी जबकि दशरथ की तरह नन्द बाबा को कुछ समय बाद कलानिधि के कला के भेद का ज्ञान हुआ था . कालान्तर में तो सभी अपने अपने कर्मोंके अनुसार कृष्ण के कोमल एवं कठोर कृपा को प्राप्त किये जिससे उनका इहलोक और उहलोक सुधर सवंर सका।

सम्पूर्ण कलाओ से पूर्ण नारायण कृष्ण को पूर्णावतार इसलिए माना जाता है क्योकि वे जीवन दर्शन के सभी क्षेत्रो में दक्ष थे . मानव जीवन का ऐसा कोई आयाम नही था जिसमें उन्होंने अपनी विशेष विशेषज्ञता साबित न करी हो चाहे वह जीवनलीला का कोई भी पड़ाव रहा हो सभी में उनके जीवनलीला के शैली ने सबको प्रभावित और मोहित कर लिया है .शिशुलिला से बाललीला में माखन चोर से लेकर पूतना वध तक और लकुटी कमरिया लेकर धेनु चराने से लेकर ग्वालबालो संग यमुना किनारे नाना प्रकार के खेल खेलते हुए गेंद लेने के बहाने कालिया नाग को नाकों चना चबाने के लिए मजबूर करना या फिर इन्द्र के अहंकार को चकनाचूर करने से लेकर मामा कंस को अपनी कटु कृपा से अपने लोक भेजकर उसके कुटिल कुशासन से जनता को मुक्त करने के साथ ही अपने माता पिता देवकी और बासुदेव को जेल की जंजीरों से सदा के लिए बंधन मुक्त करके उन्हें राज्य सिंघासन पर बैठाना हो सभी में उनकी नीति निपुणता झलकती है .

राधा के कृपा कटाक्ष के प्रिय राधेकृष्ण के अद्भूत अलौकिक मधुर लीलाओं की चर्चा तो जन जन करता है और जनसामान्य के हृदय के अंतस्थल में करुणासागर प्रभु श्री गोविन्द माधव के लिए अगाध प्रेम बसता है .
करुणासागर के करुणा की वर्षा तो सभी पर होती है बस जरूरत है हृदय में भाव उत्पन्न होने की जिससे उनकी कृपा की अनुभूति हो सके . जिस पर कृपा निधि की कृपा होती है उसी के हृदय में भक्तिभाव का अगाध प्रेम उमड़ता है और वही इन सब बातो में आस्था विश्वास रखता है . प्रभु की लीला और गाथा अनन्त है जिसे आज तक पूर्ण रूप से कोई जान नही सका है, जो कुछ प्रभु की कृपा प्रसाद से भक्त शिरोमणि संतो ऋषियों मुनियों के द्वारा जाना समझा गया है तथा उसे उनके द्वारा मौखिक उपदेश के रूप में या फिर लिपिबद्ध करके ग्रंथो पुराणों के रूप में इस संसार के कल्याणार्थ उपहार स्वरुप दिया गया है ,उसी का अगर रंचमात्र समझ आ जाये तो जीवन धन्य और सफल हो जाय। * जय श्री राधे कॄष्ण जी *****करूणानिधि ओझा

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 415 Views
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