Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
30 Aug 2018 · 1 min read

ग़ज़ल- धन की जो किल्लत हो गयी है

ग़ज़ल- धन की जो किल्लत हो गयी है
☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆

हमें धन की जो किल्लत हो गयी है
बिकाऊ ये मुहब्बत हो गयी है

हमारा आशियाना लुट गया जो
कि कुछ ज्यादा ही ज़िल्लत हो गयी है

भलाई की है मैंने हर किसी की
मगर उल्टे अदावत हो गयी है

निकलता घी नहीं सीधी तरह से
कि सच्ची ये कहावत हो गयी है

गली में घूमकर देखा कि सबकी
बड़ी बदरंग हालत हो गयी है

अभी ‘आकाश’ कुछ पैसे कमा लो
तेरी कितनी ज़लालत हो गयी है

– आकाश महेशपुरी

Loading...