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14 Aug 2018 · 1 min read

"कहाँ आ पहुँचें"

ऊँचें ऊँचें पर्वतों सी चाहत में कहाँ आ पहुँचें
लोग इक़ ज़िन्दगी से दूसरी ज़िन्दगी में जा पहुँचें

ज़मीर का मोल आसमानों पर चढ़ा है इस क़दर
जो ना बेच सके ज़मीर अपना वो सूली पे जा पहुँचें

सच का कोई भी खरीदार ना दिखा भरे बाज़ार में
जब बेचने के लिए कुछ सच हम बेवजहा जा पहुँचें

देखों आसमां दूर होकर भी ज़मीं पर बरसता है
मग़र यहाँ तो अपने भी क़रीब होकर दूर जा पहुँचें

कुछ धुंधली सी हो गयी है, तस्वीर इस ज़माने की
ऐ ख़ुदा हमें कोई हमसा नहीं दिखता बता कहाँ पहुँचें

लोगों ने ना जाने कितने ख़ुदा बना रक्खे हैं देख लें
हमें फ़िर भी इक़ तेरी ही आस है, दुआं पहुँचें ना पहुँचें

___अजय “अग्यार

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