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12 Aug 2018 · 1 min read

मुक्तक

मेरे सिरहाने में तक़िया ख़्वाब का
नींद आती है नवेली की तरह ।
आग की सतरें पिघल कर साँस में
फिर महकती है चमेली की तरह ।

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