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11 Aug 2018 · 1 min read

ख्वाब

ना शक का शौक था मुझको , न किस्मत को मैं पढ़ पाया.
ना हक था प्यार का मुझको , न जिद पर मैं यूं अड़ पाया .
मेरा तो ख्वाब था बस यह , के अपनों में रहूंगा मैं .
ना दम था कहने का मुझ में , ना अपनों से मैं लड़ पाया .
कहां जो उन्हें मुझसे यह , कि पढ़ने दूर हो जाओ .
ना मन था जाने का मुझको , ना उन से यह मैं कह पाया .
अब जो दूर हूं उनसे , तो दिल मेरा मचलता है .
न जज्बा था यह कहने का , ना उनके साथ रह पाया

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