Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
6 Aug 2018 · 1 min read

गीत

“अविरल नीर बरसता है”
********************

समझ न पाऊँ प्रेम विधा मैं उर में नेह उपजता है
रोम-रोम मदमाता मेरा अविरल नीर छलकता है।

निश्छल प्रेम सहज जीवन में अनुरागी मन बरस रहा
भोगी सावन मन अकुलाता प्यासा चातक तरस रहा
मंद पवन का झोंका आकर दे संदेश विहँसता है।
अविरल नीर बरसता…..।।

मौसम की उन्मुक्त बहारें सुरभित उपवन लहरातीं
घनघोर घटाएँ धूम मचा हर घर आँगन महकातीं
बरसा दो सुख की बदली तुम याचक पथिक तरसता है।
अविरल नीर बरसता…।।

चंचल हिरणी भरकर छलांग माया मोह बढ़ाती हैं
सागर तट टकराती लहरें गीत विरह के गाती हैं
मधुर मिलन की आस सँजोए खग दृग राह निरखता है।
अविरल नीर बरसता…।।

डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
वाराणसी (उ. प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर

Loading...