Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
31 Jul 2018 · 1 min read

जीवन नौका

तिरती जाए जीवन नौका
नदिया पर वह तिरती है
लहरों से अंठखेली करती
तूफ़ानों से लड़ती है
मन्थर मन्थर कभी चले यह
कभी गति को पकड़ती है
धीरज दे कर पास बुलाये
या फिर छोड़ निकलती है
तिरती जाए जीवन नौका।

कभी सम्भल कर भर्ती है पग
डगमग डगमग चलती है
बातें करती है नदिया से
या खामोश निकलती है
बुनती है स्वप्निल तारों को
या सीपों को गिनती है
रिमझिम बारिश से बतियाती
कलियों सी वह खिलती है
तिरती जाए जीवन नौका।

नौका बिन नदिया है सूनी
नदिया बिन न नाव चले
बिन सांसे जीवन है सीमित
जीवन श्वासें संग बहें
सागर तुझे पुकार रहा है
ऐ नौका तू तिरती जा
गहराइयों से कर ले नाता
जलधि संग तू प्रीत लगा
तिरती जाए जीवन नौका।

विपिन

Loading...