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27 Jul 2018 · 2 min read

चलो फिर चलें हम अपने गांव जहां है नीम की ठंडी छाँव कि बचपन टेर रहा कि बचपन टेर रहा।

चलो फिर चलें हम अपने गांव,
जहां है नीम की ठंडी छाँव
कि बचपन टेर रहा, कि बचपन टेर रहा।
बसी सोंधी मिट्टी की गंध
घूमते बालक हैं स्वच्छंद
नहीं ट्रैफिक की रेलम पेल
सनीनो के सुन्दर से खेल
जहां है पूरा अपना ठांव
चलो फिर चलें हम अपने गांव
जहां है नीम की ठंडी छाँव
कि बचपन टेर रहा कि बचपन टेर रहा।
जहां हम सुनते आल्हा राग
प्रेम से गाये जाते फाग
नहाती गौरैया तालाब
झूलते झूला बच्चे बाग
घूमते नंगे नंगे पाँव
चलो फिर चलें हम अपने गांव
जहां है नीम की ठंडी छाँव
कि बचपन टेर रहा कि बचपन टेर रहा।
कबड्डी अपना प्यारा खेल
नहाते सब मिल के ट्यूबवेल
बाल मन की वो प्यारी जंग
रोज खुट्टी पुच्ची के संग
प्रात ही सगुन काग की कांव
चलो फिर चलें हम अपने गांव
जहां है नीम की ठंडी छाँव
कि बचपन टेर रहा कि बचपन टेर रहा।
जहां हैं सुन्दर सुन्दर पेंड़
चरायें गाय बैठ के मेंड़
फसल पे रास लगे अनमोल
एक अंजुरी में जग लो तौल
दिखावें दद्दू अपने दांव
चलो फिर चलें हम अपने गांव
जहां है नीम की ठंडी छाँव
कि बचपन टेर रहा कि बचपन टेर रहा।
बहे विश्वास की सरिता वो
कि मइया गंगा पानी दो
सभी को फिर गुड़धानी दो
बरस कर तुम मन को हर्षाव
बहे बरखा में कागज नाँव
चलो फिर चलें हम अपने गांव
जहां है नीम की ठंडी छाँव
कि बचपन टेर रहा कि बचपन टेर रहा।
तोड़ते कच्ची अमियां ढेर
कभी खट्टे मीठे से बेर
नहीं चिन्ता जल्दी या देर
खेल फिर गुइयां गुइयां आॅव
धकेले फिकर कुऑ में जांव
चलो फिर चलें हम अपने गांव
जहां है नीम की ठंडी छाँव
कि बचपन टेर रहा कि बचपन टेर रहा।

अनुराग दीक्षित

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