Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
24 Jul 2018 · 1 min read

उसकी आंखों में

मेरी हाथों की रेखा में

जो-जो लिखा था

मुझे उसकी आंखों में

वो सारा दिखा था

उसकी आंखों में

पूरा एक मेला लगा था

उसके अन्दर तो जाते ही

मैं खो गया था

वहीं पर एक शहर

पूरा-पूरा बसा था

उसी में मेरा अपना

एक सुन्दर मकां था

प्यार प्रीति का गहरा

एक सागर भरा था

डूबकर उसमें मैं ही तो

अकेला मरा था

भीगा-भीगा मौसम

घिरा बादल घना था

तन्हाइयों में भीगता

मैं गुमसुम खड़ा था

अन्दर पाबन्दियों का

किला ढह रहा था

तूफ़ान से लड़कर ‌

एक दीपक जला था

बार पहली जब उससे

वहां पे मिला था

देखा फूलों सा चेहरा

उसका खिला था

छिपा आंखों के भीतर

दिल का पता था

जो कहीं न मिला

वो आंखों में मिला था

आंखों ने आंखों में

जो भी कुछ कहा था

दिल की धड़कनों में

सब सुना जा रहा था

उसकी आंखों में

जो था वो बाहर न था

चाहता वहीं पर बसूं

बाहर आना न था

पूरी सृष्टि में विधाता ने

सौंदर्य जितना गढ़ा था

उसकी आंखों के अंदर

सारा का सारा भरा था

***

–राममचन्द्र दीक्षित’अशोक’

Loading...