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21 Jul 2018 · 1 min read

ग़ज़ल

काफ़िया -आ
रदीफ़-लगा
2122 2122 212

“बेबसी”
*******

छिन गईं खुशियाँ चमन लूटा लगा।
आसमाँ भू पर गिरा ऐसा लगा।

नफ़रतों के बीज इतने बो दिए
बेरहम पतझड़ समाँ सारा लगा।

बेबसी सुनकर रुँआसी रह गई
दर्द का भी साथ अब छूटा लगा।

हो गई जब ज़िंदगी भी बेवफ़ा
मुस्कुराता आइना झूठा लगा।

जब ज़खीरा याद का पत्थर हुआ
मिट गए जज़्बात सब टूटा लगा।

डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
वाराणसी(उ. प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर

238 Views
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