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19 Jul 2018 · 1 min read

शाम ढलती रही प्रीत पलती रही प्यास होठों पे आके मचलती रही।

शाम ढलती रही प्रीत पलती रही
प्यास होठों पे आके मचलती रही।
हम रहे फ़िक्र में रह गए तुम कहाँ
ढूँढते रह गए बस यहाँ से बहाॅ
खो गए तुम कहाँ खो गए तुम कहाँ
यूँ ही रोज तुम रूख बदलती रहीं
शाम ढलती रही प्रीत पलती रही
प्यास होठों पे आके मचलती रही।
जाने क्यों हमको किस्मत ये छलती रही
वादा कर वादे पूरे किए ही नहीं
रोज वादे पे वादा बदलती रहीं
प्रीत की ओस बन बूंद गलती रही
शाम ढलती रही प्रीत पलती रही
प्यास होठों पे आके मचलती रही।
वक्त अनमोल है जिन्दगी में यहाँ
वक्त को वक्त हम थे समझते कहाँ
वक्त सी तुम तो आगे को चलती रही
चांद सी रोज छुपती निकलती रहीं
शाम ढलती रही प्रीत पलती रही
प्यास होठों पे आके मचलती रही
ना कहा रुक गए हां कहा चल दिए
ना औ हां में ही उलझे निकलते रहे
नासमझ ही सही नासमझ बन रहे
प्रीत की रीत तुम बस समझतीं रहीं
शाम ढलती रही प्रीत पलती रही
प्यास होठों पे आके मचलती रही।

अनुराग दीक्षित

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