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3 Jul 2018 · 1 min read

हो गए तुम सत्ता

सिलसिला वर्षों से पुराना रहा

कहानी की तरह मैं कहता रहा

तुम तूफ़ानों की तरह तो आए

पेड़ों सा झुकता मैं टूटता रहा

***

कुदरत का कैसा करिश्मा रहा

तुम सदा आगे रहे मैं पीछे रहा

दौर जब-जब तबाही का आया

तब-तब तुम पीछे मैं आगे रहा

***
ये बीमारी नहीं दवा का दोष है

दवा देता रहा ये दर्द बढ़ता रहा

है बस इतना रहा जिंदगी में मेरी

भाग्य को मैं तो कोसता ही रहा

***

ये नज़रे खुली की खुली ही रही

लूटता माली मेरे चमन को रहा

ये असंभव संभव तभी हो सका

हो गए तुम सत्ता मैं जनता रहा

***

तुम रहे तो खड़े अडिग चट्टान से

मैं मिट्टी सा सदा भुरभुरा ही रहा

देखता रह गया बस तुम्हारी तरफ

सितम अगला इंतजार करता रहा

***

चलते-चलते वो मंजिलें मिल गईं

हैं लौटना जहां से न मुमकिन रहा

नदी सा तुम्हारे बीच का फासला

तुम पहला मैं दूसरा किनारा रहा

***

तुम हकदार रहे ज्ञान विज्ञान के

मेरे कब्ज़े में सदा हास्यास्पद रहा

है रहा दावा तुम्हारा असरदार तो

हमेशा मैं तो विवादास्पद ही रहा

***

-रामचन्द्र दीक्षित ‘अशोक’

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