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25 Jun 2018 · 1 min read

ग़ज़ल

हर कदम पर ख़ता करे कोई ।
ज़ुल्म सहके दुआ करे कोई ।

दिल्लगी ने तो दिल तोड़ दिया ,
अब प्यार से अदा करे कोई ।

है आजकल बेवफ़ाई का दौर ,
अच्छा लगेगा वफ़ा करे कोई ।

यही दुनिया की रस्म है शायद ,
फंसता कोई , ख़ता करे कोई ।

हम भी जी लेंगे और कुछ लम्हें ,
क़ाश थोड़ी-सी वफ़ा करे कोई ।

याद में कोई अब भी आता है ,
उसको कैसे दिल सेे ज़ुदा करे कोई ?

सामने हमारे रहता है अक़्सर ,
और हमीं से दग़ा करे कोई ।

ऐ “निधि” कोई है फुटपाथों पे ,
और महफिलों में मज़ा करे कोई ।

निधि मुकेश भार्गव

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