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12 Jun 2018 · 1 min read

दस पैसे रोजाना -सार छंद –

प्रथम फुहारों से बारिश की,मौसम हुआ सुहाना !
लगा नाचने मोर झूमकर, …हुआ मस्त दीवाना !
राजी हुआ खेतिहर ऐसे, ….जैसे मिला खजाना !
कुदरत का ये खेल समूचा, कहाँ किसी ने जाना !!
रमेश शर्मा

वो माता का मुझे डांटना ,….फिर से मुझे मनाना !
आये शैशव का रह रह कर, मुझको याद जमाना !
देती थी माँ मुझे हाथ में ,……… दस पैसे रोजाना !
हुआ पाठशाला की खातिर, जब भी कभी रवाना !!
रमेश शर्मा

1 Like · 295 Views
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