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10 Jun 2018 · 1 min read

सहमा उपवन

सहमा उपवन छाया कुहास
अलि मौन शांत बीता सुहास
कलिओं के बीच सहमी तितली
किसलिए पीर क्यों जग उदास..

आगंतुक न कोई आया न गया
किसलिए शुष्क व्यवहार नया
क्यों धरा ह्रदय रोया जर्जर
क्यों निशा दिखे अति घोर निडर
जगती का निर्बल भाल हुआ

क्यों लगे सहस सब व्यर्थ प्रयास
किसलिए पीर क्यों जग उदास..
सहमा उपवन छाया कुहास..

क्यों छिन्न भिन्न गरिमा सिसके
संबंधों के दीपक ठिठके
बुझती लौ रिश्ते नातों की
भावों के झंझावातों की
किस रक्त से अंबर लाल हुआ

उजले दिन से हो तम का भास
किसलिए पीर क्यों जग उदास..
सहमा उपवन छाया कुहास..

पुहुपों का मसला जाता है
छिपता क्यों आज विधाता है
क्यों देख असुर नर्तन भीषण
क्यों देख रुदन पीड़ा शोषण
नहीं फिर से क्यों अवतार हुआ

हे ईश्वर तेरा ये उपहास
किसलिए पीर क्यों जग उदास..
सहमा उपवन छाया कुहास..

©®
अंकिता कुलश्रेष्ठ
आगरा

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