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21 May 2018 · 1 min read

जापानी छंद : कतौता

प्रदीप कुमार दाश “दीपक”
Katauta : कतौता

01.
धरा की थाती
निर्मल प्राण वायु
यही दीप की बाती ।
——0—–

02.
देहरी दीप
गूंजी जो किलकारी
दादी दादा हर्षित ।
—–0—–

03.
माँ की मुस्कान
मेरा जीवन गान
वेद-गीता-कुरान ।
—–0—–

04.
व्यूह में फँसी
भारतीय जनता
मानो टूटा पहिया ।
—–0—–

05.
साधोगे लक्ष्य
रखो विहग दृष्टि
होगी उमंग वृष्टि ।
—–0—–

06.
परी कहानी
देख न पायी जग
रही बेटी अजन्मी ।
—–0—–

07.
जलती बत्ती
बलात्कार सहती
निर्भया सिसकती ।
—–0—–

08.
छिना सहारा
बूढ़ी आँखें बेकल
जीवन आज हारा ।
—–0—–

09.
नन्हा सा दिया
मिटाता अंधकार
रखना ऐतबार ।
—–0—–

10.
मन दर्पण
आँखों का समन्दर
अश्रु की कतरन ।
—–00—–

प्रदीप कुमार दाश “दीपक”
साहित्य प्रसार केन्द्र साँकरा
जिला – रायगढ़ (छत्तीसगढ़)
haikumanjusha.blogspot.in

Language: Hindi
1035 Views
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