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14 May 2018 · 2 min read

ये कैसी आजादी

ये कैसी आजादी है जब, रोता सारा देश यहाँ ।
देखा हमने ये पहली बार , यूँ हँसता पहरेदार यहाँ ।।

वतन को वापस वो दिन लौटा दो,
जब रहती थी ख़ुशहाली ।
मेरे वतन में आग लग गई ,
वो करते रहत हँसी-ठिठौली ।।
ये कैसी आजादी है जब …..

शासक जब इस गुलिस्तां – ए- चमन का,
मूलनिवासी बन जायेगा ।
समता, भाईचारे ओर बन्धुता का,
परचम यहाँ लहरायेगा ।
न होगा भेदभाव ओर अत्याचार का शासन,
कोई मूलनिवासी जब देश का शहंशाह बन जायेगा ।।
ये कैसी आजादी है जब………

हमें इस जहाँ में न कोई झगड़ा चाहिए..
हर रोज मंदिर – मस्जिद का यहाँ न रगड़ा चाहिये ।
ये कैसी बिडम्बना कि रहते एक बस्ती में ,
प्यार से रामू ओर सलीम,
फ़िर भी बदलते रोज़ यहाँ,
न हमको नए परवान चाहिए ।।
ये कैसी आजादी है जब …..

दस – दस इक साथ सर् वो ले गए,
हर एक घर को दर्द दे गए ।
दे कुर्बानी वो अमर हो गए,
वो अपना जीवन हमको दान कर गए ।
ले बदला उनसे कटे सर् का ,
ऐसा हमें अपना यहाँ पहरेदार चाहिए ।।
ये कैसी आजादी है जब …….

एक बैठा कुबेर बनकर,
दूजे पास नहीं खाने को दो टुकड़े ।
हों सब खुशहाल इस वतन में,
ऐसा हमको वो शासक अशोक महान चाहिए,
रहती थी जनता यहाँ अमनो – चमन में,
ऐसा हमको वो शासन हर बार चाहिए ।।
ये कैसी आजादी है जब ……….

होता है शोषण यहाँ ग़रीबों का साहूकारों द्वारा,
इस व्यवस्था का हमको स्थायी समाधान चाहिये ।
मरते हैं हर रोज यहाँ,
सीवर में न जाने कितने,
सीवर में मरने के लिए उन सबको आरक्षण चाहिए ।।
ये कैसी आजादी है जब ………….

होते हैं यहाँ हर रोज बहन- बेटीयों के बलात्कार,
इन जुल्मों को रोके ऐसा कोई नम्बरदार चाहिए ।
“आघात” अब इस देश को कोई चमत्कार चाहिए,
हमें अब ऐसे पहरेदार से छुटकारा चाहिए ।।

ये कैसी आजादी है जब, रोता सारा देश यहाँ ।
देखा हमने ये पहली बार, हँसता पहरेदार यहाँ ।।

©®आर एस “आघात” ©
9457901511

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