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11 May 2018 · 3 min read

**खट्टा मीठा रिश्ता**

सास बहू का रिश्ता सदैव खट्टा मीठा रहा है । फिर जमाना चाहे जो भी हो इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है । सास बहू को बेटी मानने का दावा तो करती है पर कभी दिल से बेटी का दर्जा नहीं दे पाती । यही कारण है की बहू भी कभी सास पर माँ सा प्यार नहीं लूटा पाती । एक लड़की अपना घर परिवार रिश्ते नाते सगे सम्बन्धी माँ बाप भाई बहन सब कुछ एक अनजान इंसान अनजान परिवार के लिए छोड़ कर आती है और बदले में क्या चाहती है अपनों सा प्यार विश्वास और सम्मान । हर लड़की का सपना होता है उसका पति और पति का परिवार उसे पलकों पर बिठा कर रखे , न जाने कितने सपने आँखों में लेकर वह नए घर में कदम रखती है । सास ससुर के रूप में नए माँ बाप देखती है । ननद के रूप में सहेली सी एक बहन देखती है । देवर का रूप छोटे भाई सा नजर आता है । पहली नजर में उसे ये पूरा परिवार अपना सा नजर आता है मगर दूसरे ही पल नजारा बदला सा नजर आता है । जैसे ही सास के मुँह से पराई शब्द सुनती है सपना टूट सा जाता है तब बहू और बेटी का फर्क साफ नजर आता है । बहू जब तक चुपचाप रहती है सबको भली लगती है पर जैसे ही जवाब देने को मुँह खोला नहीं की सबकी नजर में खटकने लगती है । और तब सास अपना ब्रह्मास्त्र चलाती है कि हे ! राम इसी दिन के लिए बेटे को पाल पोसकर बड़ा किया था की बहू ऐसे जबान लड़ाए । भाग्य फूट गए मेरे तो जो ऐसी बहू मिली । सभी बहू को खरी खोटी सुनाने लग जाते हैं । बहू का दोष हो या ना हो सुननी बहू को ही पड़ती है । बहू के तो सारे सपने ही बिखर जाते हैं । जिनके लिए सब कुछ छोड़ा वही दिन में तारे दिखाते हैं । बहू बेचारी कहाँ जाए शादी के बाद तो माँ बाप भी पराई कहने लग जाते हैं । करो या मरो की हालत में आ जाती है बहू । अब अपने हक के लिए लड़ जाती है बहू । सास की बात सच हो जाती है बहू की ही सारी कमी हो जाती है । माना की सभी सास एक सी नहीं होती मगर सारी गलती बहू की भी नहीं होती । सोचिये जब हम किसी पौधे को उखाड़कर दूसरी जगह लगाते हैं तो उसकी पहले से ज्यादा संभाल करनी पड़ती है । कहीं पौधे को नई जगह नई मिट्टी रास ना आई तो पौधा सूख ना जाए क्योंकि पौधे को भी थोड़ा समय लगता है अपनी जड़ें नई मिट्टी नई जगह में जमाने में तो फिर बहू तो 20-25 साल एक अलग माहौल अलग वातावरण में पली बढ़ी है । वहाँ से ससुराल के माहौल में डलने में थोड़ा समय तो लगेगा ही । फिर ससुरालजन कैसे बहू से ये उम्मीद लगा लेते हैं की वो आते ही अगले ही पल खुद को उनके हिसाब से डाल लेगी । सारी लड़ाई उम्मीदों की है जिस नए रिश्ते को भावना ,प्यार , विश्वाश और सम्मान से जीता जाना चाहिए उस पर आते ही उम्मीदों का बोझ लाद दिया जाता है और शुरू हो जाता है तानों का दौर । और सास बहू का प्यारा सा रिश्ता कब उन तानों की भेंट चढ़ जाता है पता ही नहीं चलता । इसीलिए तो हम कहते हैं …
सास छोड़े ना अपना राज बहू को जीने दे ना अपना आज ।
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