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18 Apr 2018 · 1 min read

वहीं जिगर से आह

छुआ बुलंदी को भले,तुमने मनुज जरूर !
लेकिन तुमसे हो गये,…सभी तुम्हारे दूर !!

निकले रचनाकार के,.वहीं जिगर से आह !
बिना पढ़े ही लोग जब ,लिख देतें हैं वाह !!

चढ़ा एक सौ चार फिर, ….तन पर तीव्र बुखार !
इक तरफ़ा जब भी हुआ,कभी किसी को प्यार !!
रमेश शर्मा…

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