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12 Apr 2018 · 1 min read

लाज रखनी है अपने वतन की हमें

गज़ल

है ज़रूरत सदा इस वतन की हमें
इस चमन की हमें, अंजुमन की हमें

मर मिटेंगे वतन के लिए दोस्तो
लाज रखनी है अपने वतन की हमें

जान जाती हो जाए वतन के लिए
है तिरंगे की ख्वाहिश कफ़न की हमें

रात में टिमटिमाता हुआ इक दिया
सीख देता है जलकर लगन की हमें

जख्म तो भर गए पर निशाँ रह गए
याद आती रहेगी चुभन की हमें

आग से खेलते हम रहे उम्र भर
कोई चिंता नहीं है तपन की हमें

हम फ़कीरों पे डंडा कमंडल फ़कत्
कृष्ण चिन्ता नहीं राहज़न की हमें

श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद

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