Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
12 Apr 2018 · 1 min read

जलता कफ़न है

भीतर ही भीतर जलता कफ़न है
जिंदा हूँ मगर सपने दफ़्न है
फ़र्क करना नामुमकिन है
जलता क़फ़न है या मन
ज़ाहिर है जलता कफ़न
तो ना होता दफ़्न
मझधार की स्थिति है
दफ़्न और कफ़न के बीच
दरमियां इसके कोई
कर गया ग़बन
भीतर ही भीतर जलता कफ़न है
जिंदा हूँ मगर सपने दफ़्न है
बीच मझधार हूँ
डूबा ना पहुंचा किनारे
इस पार जाऊँ या उस पार
इधर जाऊं या उधर
रहूँ मझधार या किधर जाऊं
समझ आता नहीं
डूबूं या तैर जाऊँ
मझधार में हूँ किधर जाऊं
भीतर ही भीतर जलता कफ़न है
जिंदा हूँ मगर सपने दफ़्न है।।
मधुप बैरागी

Loading...