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1 Apr 2018 · 2 min read

आपके दिल में क्या है बता दीजिए...

आपके दिल में क्या है बता दीजिए
इस मुहब्बत का कुछ तो सिला दीजिए

हमने ज़ुर्मे-मुहब्बत तो कर ही दिया
आप इस ज़ुर्म की अब सज़ा दीजिए।

इश्क़ के मर्ज़ से कैसे तौबा करूँ
देख कर नब्ज़ मुझको दवा दीजिए।

बोसे नज़रों से ले लूंगा मैं आपके
चाँद सी अपनी सूरत दिखा दीजिए।

चांद में दाग़ है ऐसा कहते हैं सब
यह वहम आप सबका मिटा दीजिए।

मुंतज़िर हैं सभी आज दीदार के
रुख से परदा जरा सा हटा दीजिए।

हूँ मैं मासूम सा और नादान भी
दिल में अपने मुझे दाख़िला दीजिए।

लोग दीवाना कहते हैं बस आपका
आप अपनी मुहऱ भी लगा दीजिए।

जिसको चाहा है शिद्दत से मैंने ख़ुदा
उसको अहसास कुछ तो करा दीजिए।

आपका रुख़ मुक़म्मल ग़ज़ल हो गया
मुस्कुराकर नया काफ़िया दीजिए।

इल्तिज़ा है मेरी आज आग़ोश की
बंदिशें दरमियां की मिटा दीजिए।

फ़ुरसतें ग़र नहीं है मुलाक़ात की
दूर से ही झलक इक दिखा दीजिए।

काफ़िला बादलों का चला जाएगा
गेसुओं को ज़रा सा हिला दीजिए।

है नज़ाकत, शराफ़त या जादूगरी
हो सके तो हमें भी सिखा दीजिए।

ज़िन्दगी भर की यह प्यास बुझ जाएगी
आप आँखों से सागर पिला दीजिए।

आपके शह्र में हूँ भटकता हुआ
मेरी मंज़िल का मुझको पता दीजिए।

है गुज़ारिश हमारी अगर मान लें
प्यार में मत किसी को दग़ा दीजिए।

आँखें पत्थर हुईं सूख आंसू गये
ज़ख्म देकर कोई फिर रुला दीजिए।

ख्व़ाहिशों का गला घोंट दूंगा मगर
ख़त मेरे सब पुराने जला दीजिए।

सिसकियां हिचकियां और सरगोशियां
आज इनके सिवा कुछ भी गा दीजिए।

खाक़ हो तो चुका है मेरा आशियाँ
अब न चिंगारियों को हवा दीजिए।

है अंधेरा घना जिंदगी में मेरी
अपनी मुट्ठी के जुगनू उड़ा दीजिए।

बैर दिल से मिटा साथ रहिए सभी
आग नफ़रत की यारो बुझा दीजिए।

दर्द की रात है जो कि कटतीं नहीं
गाके लोरी मुझे माँ सुला दीजिए।

बस गुज़ारिश ख़ुदा से मेरी है यही
अपनी रहमत को सब पर लुटा दीजिए।

|| पंकज शर्मा “परिंदा” ||

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