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1 Apr 2018 · 1 min read

रुख से परदा हटाना मजा आ गया..

रुख से परदा हटाना मजा आ गया।
बिजलियाँ यूँ गिराना मजा आ गया।

बात जाने न हमने क्या कह दी मगर
देखकर मुस्कुराना मजा आ गया।

तोड़कर बंदिशें इस ज़माने की सब
रोज मिलना मिलाना मजा आ गया।

पल दो पल के लिये रब से मांगा सुकूँ
हाथ तेरा थमाना मजा आ गया।

इश्क में हो गया हूँ मैं पागल तेरे
कह रहा है जमाना मजा आ गया।

नींद कोसों हुई दूर मुझसे मगर
मौत का थपथपाना मजा आ गया।

जिन किताबों में दिल को निचोड़ा कभी
आग उनमें लगाना मजा आ गया।

एक मुद्दत हुई भूख मिटती नहीं
माँ के हाथों से खाना मजा आ गया

आसमां ये “परिंदा” न छू ले कहीं
क़ैद में फड़फड़ाना मजा आ गया।

पंकज शर्मा “परिंदा”

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