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30 Mar 2018 · 1 min read

पहचान

बिन चेहरों के कभी ,
पहचान नही होती ।

यह सरल बहुत जिंदगी ,
पर आसान नही होती ।

रवि बादल में छुपने से ,
कभी साँझ नही होती ।

छूकर शिखर हिमालय का ,
तृष्णा कभी तमाम नही होती ।

पाता है मंजिल बस वो ही ,
राहों से पहचान नही होती ।

चलता है मंजिल की खातिर ,
निग़ाह मगर आम नही होती ।
बिन चेहरों के …
..
.. विवेक दुबे”निश्चल”@…

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