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9 Feb 2018 · 1 min read

भावों की सरिता बही,

भावों की सरिता बही, भीगे आज कपोल ।
सिसकारी सब बोलती, नयना अधर न खोल ।।
नयना अधर न खोल, घोल रही रंग विरह के ।
अँसुअन हैं अनमोल, जिए कितने ग़म सह के ।।
कह दीपक कविराय, बढ़ी विपदा नावों की ।
वेग न सूझत भाय, बही सरिता भावों की ।।

दीपक चौबे ‘अंजान’

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