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6 Feb 2018 · 1 min read

जीवन का मर्म

मानव जीवन मिला रे प्राणी
कर नेकी कर कुछ सत्कर्म
परोपकार करने में ओ बंधु
न करना तू जरा भी शर्म।

अरे भला करके दुखियों का
तू कर ले कुछ पुण्य कुछ धर्म
परोपकार करने में ओ बंधु
न करना तू जरा भी शर्म।

मन न अपना कठोर बना तू
हृदय को रखना सदा तू नर्म
परोपकार करने में ओ बंधु
न करना तू जरा भी शर्म।

दिमाग को रखना तू शीतल
न रखना बिल्कुल भी तू गर्म
परोपकार करने में ओ बंधु
न करना तू जरा भी शर्म।

जो बोओगे वही काटोगे
जीवन का तो यही है मर्म
परोपकार करने में ओ बंधु
न करना तू जरा भी शर्म।

रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान)
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना

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