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28 Jan 2018 · 1 min read

इंसान यूंही कबतक इंसान को छलेगा।

इंसान यूं ही कब तक
इंसान को छलेगा।

कहीं धर्म का आडंबर
कही जात की लड़ाई,
अपनो के खातीर अपने
ही खोद रहे खाई।
ईश्वर का नाम लेकर
कबतक ये रण चलेगा,
इंसान यूं ही कब तक
इंसान को छलेगा।

पैसो की है ये दुनिया
यहाँ शान की लड़ाई,
आखिर कैसी दुनिया
भगवन तुने बनाई।
इंसानियत पे संकट
कब तक यूं ही चलेगा,
इंसान यूं ही कब तक
इंसान को छलेगा।

रंग-भेद वर्ग-भेद यहाँ
नीच ऊँच की खाई,
मानवता मिटाने
मानव ने कसम खाइ,।
एक दूसरे को कबतक
वह देख कर जलेगा,
इंसान यूं हीं कबतक
इंसान को छलेगा।
———
©®पं.संजीव शुक्ल “सचिन”

Language: Hindi
230 Views
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