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25 Jan 2018 · 1 min read

क्या सुनाएं

क्या सुनाएं

उठती-गिरती लहरों पर
आओ कोई गीत लिखें
तुम अपनी व्यथा कहो
हम अपनी कथा कहें..

क्या सुनाएं तुमको गाथा
क्या बताएं अभिलाषा
रिक्त-सिक्त वसंत खड़ा है
कहें किससे मन की भाषा।

रेखाओं में सिंदूर घिरा है
मन विचलित भय खड़ा है।
नादान, भोली ये जगराशि,
आतुर अंक भूचाल बड़ा है।।

द्वार-द्वार वंदन सूने हैं
तिरंगे में संताप सजा है
हस्तगत क्रंदन कोने हैं
कैसा ये विधान लिखा है।।

-सूर्यकांत द्विवेदी

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