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24 Jan 2018 · 1 min read

*नदी का बात*

नदी का बात
मेरे तट पर जब तुम आते हो,,
कपड़े धोते हो मुझमें नहाते हो,,

शेम्पू साबुन की भरमार होती है,,
शुद्ध करते नही कचरा फैलाते हो,,

वाहनों की देखो होती है भरमार,,
मेरे ही जल से उनको धो जाते हो,,

पन्नी कागज का उपयोग अपार,,
हरओर पाउच पैकेट फाड़ जाते हो,,

पुण्य कमाने का तरीका निराला है,,
प्लास्टिक दीप माला छोड़ जाते हो,,

चुनरी तो मेरी पहले खोद ली तुमने,,
अब चीनी कपड़े की चुनरी उढ़ाते हो,,

कब तक और कितना सहन करू,,
बेटा हो माँ में मलमूत्र त्याग जाते हो,,

सब तट वीरान है घाट ये सुनसान है,,
इतने भक्त आते पर पेड़ न लगाते हो,,

अब मेरे बेटों मुझे और न बेहाल करो,,
माँ सेवा के वक़्त कन्नी काट जाते हो,,

नदी को माता माननें बालो सुनो माँ,,
मनु बच्चे होने का फर्ज नही निभाते हो,,
मानक लाल मनु

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