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23 Jan 2018 · 2 min read

इत्तेफ़ाक़

कैफे में साथ वाली टेबल से जब उसे किसी ने पुकारा तो उसने आवाज़ की दिशा में सिर घुमा कर देखा ।
“राकेश !” “अरे, तुम यहाँ? क्या इत्तेफ़ाक़ है,” कहते हुए उसने हाथ मिलाने के लिए आगे बढ़ाया । राकेश बस मुस्कुरा रहा था।
बीस साल। एक ही शहर में रहते हुए इतने लंबे अंतराल के पश्चात यह मुलाक़ात। प्रमोद राकेश को देख उतना चकित नहीं लग रहा था जितना कि भयभीत।
अपरिचितों से भरे कैफे के शोरो-गुल के बीच प्रमोद का दिमाग़ जैसे सुन्न हो गया । अचंभित हो दोनों एक दूसरे को देखते रह गये ।
क्या है ईश्वर की इच्छा, सोचते हुए वो अतीत की यादों में गुम हो गये।
लग रहा था जैसे कल की ही बात हो। प्रमोद ने राकेश की थीसिस “भ्रष्टाचार समाजिक या मानसिक रोग “ चुरा कर पीएचडी कर ली थी। राकेश ने इसकी शिकायत हर जगह की पर प्रमोद की पहुँच भी हर जगह थी। पीएचडी प्रमोद को ही मिली और साथ में स्थानीय कॉलेज में एक लेक्चरर पोस्ट भी। राकेश यद्यपि टूट गया था पर उसने हार ना मान कर और एक अन्य विषय पर पीएचडी कर यूनिवर्सिटी में लेक्चरर की पोस्ट पर नियुक्त हो गया और कालांतर में आईपीएस कैडर के द्वारा जिले का आईजी बन गया।
अतीत से निकल कर दोनों बाहर आये तो प्रमोद ने अपने को पुलिस से गिरा पाया।
“तुम्हारा खेल समाप्त प्रमोद। अपने ही कॉलेज में तुमने जितने घपले किये और सालों साल परीक्षाओं के पेपर लीक करने के अपराध में , में तुम्हें गिरफ्तार करता हूँ। मेरी ही चोरी की हुई थीसिस से भी , लगता है तुमने कुछ सीखा ही नहीं।” राकेश ने प्रमोद के कंधे पर हाथ रखा। पुलिस के घेरे में प्रमोद कुछ कहने लायक नहीं रहा।
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त्रिभवन कौल

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