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14 Jan 2018 · 1 min read

बिछड़ कर जीने की तरकीब बना ली हमने

बिछड़ कर जीने की तरकीब बना ली हमने
पीकर अश्क, लबों पर हंसी सजा ली हमने।
शिकवा न गिला हम तेरी बेवफाई का करेंगे
यह कसम आज तेरे सर की उठा ली हमने।
थे करीब कभी तुम्हारे हम, अब एक याद ही सही
नजदीकतन फासलों की महफिल सजा ली हमने।
तुमको कभी चाहा था, सपना समझ भुला देंगे
भुलाकर यादें पुरानी, नई यादें बना ली हमने।
तुमको मांगा था इक बार हमने दुआ में खुदा से
ख्वाबों को छोड़ हकीकत की दुनिया बसा ली हमने।

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