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14 Jan 2018 · 1 min read

ग़ज़ल : ..... बूढ़ा भी जवानी सोचता है ।

….. बूढ़ा भी जवानी सोचता है ।

वाह ! बूढ़ा भी जवानी सोचता है ।
देश अपना तो* कुरबानी सोचता है ।।

सब्र उसको है नहीं पाया जो* उसने,,
उफ्फ ! सूरत वो सुहानी सोचता है ।।

रोज ये अखबार वाला चाहता क्या,,
रोज अब नई* नई* कहानी सोचता है ।।

है गजब काला कलूटा भी तो* यारो,,
आज कल सुन्दर वो* रानी सोचता है ।।

दौर आया अब हमारा खूब अच्छा,,
ये जमाना भी* मरदानी सोचता है ।।

देख ये कौवा भी* कोयल की तरह ही,,
अब तो* मीठी मधुर बानी सोचता है ।।

हर नया शौकीन तो क्रिकेट का अब,,
खेल मन भावन तूफ़ानी सोचता है ।।

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दिनेश एल० “जैहिंद”
28. 09. 2017

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